Tuesday 13 January 2015

उड़ई की हिलजात्रा


तीज-त्यौहार हमारे जीवन के हिस्से होते हैं .हर महीने कोई न कोई त्यौहार हो जाता है .बच्चों का इनके प्रति विशेष उत्साह होता है .वे हर त्यौहार में  पूरे उल्लास से भाग लेते हैं .यह कहना गलत नहीं होगा कि किसी भी त्यौहार का वास्तविक आनंद बच्चे ही उठाते हैं . बच्चे जिन त्योहारों को मनाते हैं वे दीवार पत्रिका के लिए विषय सामग्री के अच्छे स्रोत हो सकते हैं . कोई त्यौहार विशेष कब ,क्यों और कैसे मनाया जाता है ? आदि के बारे में बच्चे अच्छा लिख सकते हैं . इससे जहाँ बच्चे की लेखन क्षमता का विकास होता है ,वहीँ अवलोकन व खोज करने की आदत विकसित होती है ,साथ ही वह अपने लोक संस्कृति के बारे में अधिक गहराई से जानने लगता है ;लोक के प्रति लगाव पैदा होता है तथा वह उसका विश्लेषण करने लगता है . मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि कोई भी तीज-त्यौहार या मेला हो उसके बारे में बच्चों से कुछ न कुछ लिख लाने के लिए कहा जाय . इससे मुझे भी उस क्षेत्र की रीति-रिवाज और परम्पराओं की जानकारी मिलती है जिसका उपयोग में सामाजिक विज्ञानं पढ़ाते हुए संसाधन के रूप में भी करता हूँ . मकर संक्रांति को कुमाऊ में ''घुघुतिया ''का त्यौहार मनाया जाता है ,मैंने कक्षा नौ के बच्चों से इस बारे में लिख लाने को कहा है जिसे दीवार पत्रिका में प्रस्तुत किया जाएगा . बाद में कभी आप लोगों के लिए .आज पढ़िए  उड़ई की हिलजात्रा के बारे में जिसे -सुनील सामंत कक्षा-दस  ने लिखा था जिसे राजकीय इंटर कालेज देवलथल की दीवार पत्रिका से लिया गया है ........
उड़ई की हिलजात्रा

पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से लगभग पच्चीस किमी की दूरी पर मेरा गांव उड़ई स्थित है। यह तीनों ओर पहाड़ी और एक ओेर खेेत-खलिहानों से घिरा है। मेरा गांव अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और धार्मिक मान्यताओं के कारण दूसरे गांवों से भिन्न है। यहां पर अनेक पर्व मनाए जाते हंै। ‘गमरा’ उनमें से एक है। इसको बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसके बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव का विवाह श्रावण मास मंे हुआ था।इसी कारण इस पर्व को श्रावण मास के सोमवार से प्रारंभ करते हैं। इस पर्व में महिलाएं एवं बच्चे अधिक भागीदारी करते हैं।पहले दिन पार्वती की घास की प्रतिमा बनाकर उसे सजाया जाता है। तत्पश्चात उसकी पूजा की जाती है।दूसरे दिन महेश्वर(शिव) की घास की प्रतिमा बनाकर सजायी जाती है।फिर शिव-पार्वती दोनों के वैवाहिक तौर पर पूजा पाठ किए जाते हैं। इसके बाद आठ दिनों के ‘खेल’ लगते हैं जिसमें झोड़े-चांचरी आदि कुमाउंनी गीत गाए जाते हैं। आठवें दिन महाकाली मनाई जाती है और अंतिम दिन हिलजातरा का आयोजन किया जाता है। यहां पर अनेक दुकानें भी लगाई जाती हैं। सभी जगह के लोग इस पारंपरिक त्यौहार को देखने आते हैं। इसमें शिव का वाहन बैल एवं गण के रूप मंे लोग मुखौटे लगाकर अनेक करतब दिखाते हैं। अन्त में लख्याभूत दिखाया जाता है। इसे भी शिव का गण माना जाता है। कहा जाता है कि इसी से इस गांव की सुख-समृद्धि जुड़ी है।
 हिलजातरा के अंत में शिव और पार्वती की घास की प्रतिमाओं को एक बारात की तरह नाचते-गाते ,ढोल-दमुवा बजाते हुए नैना देवी मंदिर में रख दिया जाता है। यहां अंतिम खेल लगाए जाते हैं। इस तरह इस पर्व का समापन हो जाता है। 







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