Friday 30 January 2015

पू0 मा0 वि0 बरेहण्डा की यात्रा डायरी

प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ जी का शिक्षा और बच्चों के प्रति समर्पण अद्भुत है। शिक्षा के मुद्दों पर लिखना ,शिक्षा से संबंधित साहित्य को पाठकों तक पहुंचाना और बच्चों की रचनात्मकता को विकसित करने के लिए नित शिक्षकों, शिक्षाविदों और बच्चों से संवाद करना उनकी दिनचर्या के अंग हैं। शैक्षिक दखल और ‘दीवार पत्रिका:एक अभियान’ को गति प्रदान करने में उनका योगदान महत्वपूर्ण हैं। पिछले दिनों अत्यधिक ठंड के चलते उ0प्र0 में स्कूल बंद होने के कारण वह बहुत बेचैन थे कि स्कूलों में बच्चों से मिलना नहीं हो पा रहा है। जैसे ही स्कूल खुले वह एक स्कूल जा पहुुंचे। प्रस्तुत है उनकी एक दिन की यात्रा डायरी, इस आशा से कि आप भी दीवार पत्रिका से जुड़े अपने अनुभव इसी अंदाज में लिख भेजेंगे-
आज पू0 मा0 वि0 बरेहण्डा गया । पहुँचते ही बच्चों ने घेर लिया। सबकी चाह थी कि पहले मैं पहले उनकी कक्षा में चलूँ। कोई हाथ पकडे था तो कोई बैग। मैंने सभी कक्षाओं में आने की बात कही लेकिन असल लडाई तो बस यही थी कि मैं पहले किनकी कक्षा में चलूँगा। खैर, मेरी काफी मान-मनौव्वल के बाद कक्षा- 8 से मेरी यात्रा प्रारम्भ हुई । बाहर धूप में ही बच्चे बैठे थे। बातचीत शुरू ही हुई थी कि कक्षा-7 के बच्चे भी वहीं आ डटे। लगभग एक महीने की लम्बी छुट्टियों के बाद हम लोग मिल रहे थे। इस एक महीने के अपने अनुभव बच्चों ने साझा किए । विभिन्न प्रकार के खेलों की चर्चा, घर में बने पकवानों की चर्चा, खेत-खलिहान की बातें, मकर संक्रान्ति पर पडोस के गाँव बल्लान में लगने वाले ‘चम्भू बाबा का मेला‘ की खटमिट्ठी बातें। गुड़ की जलेबी, नमकीन और मीठे सेव, गन्ना (ऊख),  झूला मे झूलने की साहस और डर भरी बातों के साथ साथ नाते-रिश्तेदारों की बातें, दादी और नानी की कहानी की बातें, गोरसी में कण्डे की आग में मीठी शकरकन्द भूनकर खाने की स्वाद भरी बातें और न जाने क्या क्या, हां, थोडा बहुत पढने की बातें भी।
बातें पूरी हो चुकने के बाद (हालाकि बच्चों की बातें कभी पूरी होती नहीं) ‘‘चकमक ‘‘ के दिसम्बर अंक में कक्षा- 8 के बच्चों के छपे गुब्बारे वाले प्रयोग पर परस्पर विचार-विमर्श हुआ। आगामी मार्च अंक के ज्यामितीय प्रयोग पर अभ्यास हुआ। ‘‘ खोजें और जानें ‘‘ के पिछले अंक में कवर पर छपे यहाँ की ‘बाल संसद‘ के चित्र पर भी बच्चों ने अपने और अपने माता पिता के अनुभव बताये। दीवार पत्रिका के आगामी अंक के कलेवर पर संपादक मण्डल के साथ बातें करके मुद्दे तय हुए। यह भी निर्णय हुआ कि  अब हर अंक पर एक साक्षात्कार अवश्य छपेगा। मनोज और केशकली मिलकर अपने प्रधानाध्यापक श्री रामदयाल जी का साक्षात्कार लेंगे। साक्षात्कार क्या है और क्यों? साक्षात्कार कैसे लें, क्या और कैसे बातें करें किन मुद्दों पर किस किस तरह से प्रश्न किया जा सकता है। मिल रहे उत्तर से प्रश्न कैसे पकडें आदि बिन्दुओं पर थोडी बातें हुईं। थोडी ही देर में वे दोनो बच्चे एक 10-12  प्रश्नों की प्रश्नावली तैयार कर लाये।वास्तव में प्रश्न चुटीले थे और उनसे प्र0 अ0 का पूरा चित्र उभरने वाला था। मुझे बेहद खुशी हुई । कौन कहता कि सरकारी विद्याालयों में प्रतिभाएं नहीं है, कोई सोच नही है। उन्हे ऐसे बच्चों से मिलना चाहिए।
थोडी ही दूर पर कक्षा - 6 के बच्चे बैठे थे। वे मुझे देख रहे थे कि मैं कब  उनकी कक्षा में पहुंचू। तो 7 और 8 के बच्चों से बातें कर मैं 6 में गया। बच्चों ने जाते ही शिकायत की कि स्कूल की दीवार पत्रिका में हमारी कक्षा के बच्चों की रचनाएं नहीं छापी जाती हैं। उनकी नजर में हमारी कहानी, कविता,लेख और समाचार ठीक नहीं है। मैं उनकी बातें देख-सुनकर हँस भी रहा था और सोच भी रहा था कि बडे बच्चों द्वारा इस प्रकार का व्यवहार ठीक नहीं है। थोड़ी देर में बच्चों ने अपना निर्णय सुना दिया कि वे अब अपनी दीवार पत्रिका अलग से निकालेंगे। मैनेे उनसे पत्रिका बनाने की प्रक्रिया को जानना चाहा तो उन सबने विस्तार से न केवल चर्चा की बल्कि संपादन टीम भी बना डाली। संपादक- कोमल, सह संपादक- राकेश, कला संपादक- शिवदेवी, समाचार संपादक - दिनेश और प्रबन्ध संपादक- पंकज। पत्रिका के नाम पर चर्चा हुई। वे मुझसे कोई अच्छा-सा नाम चाह रहे थे। मैने कहा कि वे  स्वयं तय करें। उमंग, तरंग, बाल बगीचा, फुलवारी, अमराई, सबेरा जैसे नाम आये लेकिन बात बन नहीं रही थी। हर नाम पर बस हाँ, हूूँ चल रहा था। तभी मंजू ने सुझाया कि इन्द्रधनुष कैसा रहेगा। सभी बच्चे एक साथ बोल पड़े, हाँ, यह ठीक है। तो कक्षा- 6 की दीवार पत्रिका का नाम हुआ - ‘‘इन्द्रधनुष‘‘। उनकी अपनी सामग्री भी लगभग तैयार है जिसमें कहानी, कविता, पेड़ पर लेख, चुटकुले, गाँव के समाचार, स्कूल की गतिविधियाँ आदि शामिल हैं। जिन्हे संजोया है अंजलि, सुनैना, युवराज, राकेश, आशा, वर्षा, पंकज, शिवदेवी ने। कोमल ने लिखा है एक धारदार संपादकीय, कि क्यों जरूरत पड़ी अपनी अलग पत्रिका निकालने की। महीने में दो बार निकलेगी, 1 और 16 को।
 विश्वास है ‘इन्द्रधनुष‘ फरवरी की 1 तारीख को अपने सात रंगों की छटा के साथ प्रकट होगा। मुझे प्रतीक्षा है और आपको भी जरूर होगी, ऐसा लगता है।

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