Friday 20 March 2015

दीवार पत्रिका बच्चों के भाषागत विकास में सहायक: कमलेश जोशी

        दीवार पत्रिका बच्चों के भाषागत विकास में सहायक: कमलेश जोशी
गैर सरकारी शैक्षिक संस्था लोकमित्र एवं आक्सफैम इंडिया द्वारा संयुक्त रूप से 15 मार्च 2015 को होटल गोमती, लखनऊ में एक शैक्षिक कार्यक्रम ‘स्कूल और शिक्षा व्यवस्था की बेहतरी में शिक्षकों की पहल‘ आयोजित किया गया। अपने तरह के इस पहले कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के सात जिलों - रायबरेली, प्रतापगढ, बाँदा, लखनऊ, मुजफ्फरनगर, बस्ती, फतेहपुर से आये एक सैकड़ा से अधिक शिक्षक/शिक्षिकाओं ने अपने स्कूलों में किये गये शैक्षिक उन्नयन के नवाचारी प्रयासों को साझा करते हुए चित्रो का प्रदर्शन भी किया। इस अवसर पर बाँदा के शिक्षकों ने बच्चों की भाषायी दक्षता के विकास में दीवार पत्रिका की बड़ी भूमिका स्वीकारते हुए दीवार पत्रिका पर काम करते हुए उपजे अपने अनुभव भी बताये और विभिन्न स्कूलों में बच्चों द्वारा बनायी गई दीवार पत्रिकाओं की प्रदर्शनी भी लगाई। दीवार पत्रिकाओं के नाम बहुत प्रेरक एवं उत्साह जगाने वाले थे- जैसे ‘बाल झंकार‘, ‘इन्द्रधनुष‘, ‘बालवाणी‘, ‘बच्चों की बात‘ आदि। कार्यक्रम में उत्तराखण्ड में कार्यरत शिक्षक तथा दीवार पत्रिका को एक अभियान के रूप में लेने वाले शिक्षक महेश पुनेठा लिखित एवं लेखक मंच प्रकाशन से सद्यः प्रकाशित पुस्तक ‘दीवार पत्रिका और रचनात्मकता‘ का लोकार्पण भी किया गया। लोकार्पण के बाद वक्ताओं ने इस पुस्तक पर अपने विचार भी व्यक्त किये।
    कार्यक्रम के मुख्य वक्ता कमलेश जोशी (अजीम प्रेमजी फाउण्डेशन, ऊधम सिंह नगर में कार्यरत) ने कहा कि दीवार पत्रिका बच्चों की भाषागत विकास में एक सशक्त साधन है। बहुत कम लागत पर तैयार यह बाल पत्रिका बच्चों की रचनात्मकता को प्रकट होने का भरपूर अवसर प्रदान करती है। यह अभिव्यक्ति का सहज, सस्ता एवं सर्व सुलभ साधन है। आगे बोलते हुए जोशी ने कहा कि हर शिक्षक को अपने विद्यालय में बच्चों के साथ दीवार पत्रिका पर काम करते हुए इसे कक्षा शिक्षण में एक संसाधन के रूप मंे प्रयोग करने की दिशा में सोचना चाहिए। इससे बच्चों में प्रबंधन एवं संपादन कौशल का विकास होता है।
    आक्सफैम इंडिया के विनोद सिन्हा ने विचार रखते हुए कहा कि दीवार पत्रिका बच्चों में साहित्यिक अनुराग उत्पन्न कर उनमें न केवल पठन संस्कृति विकसित करती है अपितु परिवेशीय घटना क्रम को लिखने के लिए प्रेरित भी करती है। इससे बच्चों में अपने आस पास हो रहे सामाजिक, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक बदलावों को महसूस करने की एक समझ पैदा होती है। लोकमित्र के राजेश कुमार ने कहा कि मुझे इस पुस्तक की तलाश कई दिनों से थी। मुझे खुशी है कि आज प्रदेश के सात जिलों के नवाचारी शिक्षकों के बीच इस पुस्तक को लोकार्पित करते हुए गर्व का अनुभव कर रहा हूँ। शिक्षा को हम सामाजिक बदलावों के आधार के रूप में देखते हैं। दीवार पत्रिका में बच्चों की सहभागिता से उनमें इस मुहिम को और बल प्रदान करती है।
दीवार पत्रिका अभियान से जुड़े शिक्षक प्रमोद दीक्षित ‘मलय‘ ने दीवार पत्रिका की रचना प्रक्रिया, उपयोगिता एवं चुनौतियों की चर्चा करते हुए कहा कि यह एक हस्तलिखित पत्रिका है जिसे एक कैलेंडर की तरह दीवार पर लटकाया जा सकता है जहां से बच्चे आसानी से पढ़ सकें। बच्चों से एकत्र सामग्री यथा कविता, कहानी, चित्र, चुटकुले, विद्यालय एवं गांव के समाचार, पहेलियां, स्कूल की गतिविधियां, पत्र, किसी का साक्षात्कार, संपादकीय, प्रेरक प्रसंग आदि को किसी चार्ट पेपर पर चिपका कर कुछ साज-सज्जा कर दी जाती है। इसे ‘वाॅल मैगजीन‘ भी कहा जाता है। यह बच्चों में लेखन क्षमता का विकास करती है। दीवार पत्रिका के माध्यम से हुए सामाजिक बदलावों की चर्चा करते हुए आगे कहा कि लोकसाहित्य, कला एवं संस्कृति को बचाये रखने में दीवार पत्रिका की बडी भूमिका है। इस पर काम करने से बच्चों के अन्दर सामूहिकता, समरसता, नेतृत्व क्षमता आदि मानवीय गुण विकसित होते हैं।
 उपस्थित शिक्षकों ने दीवार पत्रिका सम्बंधी प्रश्न भी किये। उस अवसर पर लोकार्पित पुस्तक ‘दीवार पत्रिका और रचनात्मकता‘  को बड़ी संख्या में शिक्षकों द्वारा खरीदा गया। संचालन राजेश कुमार ने किया। कार्यक्रम में शिक्षाविद एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं की उपस्थिति ने प्राण फूंके। अनूप शुक्ल ने सबका आभार व्यक्त किया।  प्रवीण त्रिवेदी, अमृत लाल, संजय, रामकिशोर पाण्डेय, क्षमा शर्मा आदि उपस्थित रहे।
प्रस्तुति: प्रमोद दीक्षित ‘मलय‘ , अतर्रा, जिला बाँदा, उ0 प्र0

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