Tuesday 24 March 2015

बाॅक्स फाइल से दीवार पत्रिका तक का सफर

     एन.सी.एफ. 2005 में विद्यालय एवं कक्षा के वातावरण को आनंददायी बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण बात कही गई है कि जिस प्रकार कक्षा को उदार ,प्रजातांत्रिक बनाए जाने की जरूरत है ,उसी प्रकार स्कूल प्रशासन और प्रशासन तंत्र को भी। शिक्षक  केवल आदेश प्राप्तकर्ता न रहे बल्कि उसकी भी आवाज सुनी जाए और उसे इस प्रकार के निर्णयों की छूट हो जो कक्षा और स्कूल की तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक हों। शिक्षकों  और उनके प्रमुखों के संबंध समानता और आपसी सम्मान पर आधारित होने चाहिए। साथ ही निर्णय बातचीत और विचार विमर्श के आधार पर हों।
    इस वातावरण को अभी धरातल में उतरने में भले समय लगने वाला है लेकिन हमारे बीच आकाश सारस्वत जी जैसे शिक्षा अधिकारी भी हैं जो बहुत पहले से इस अवधारणा पर चल रहे हैं। उनके शिक्षकों के साथ समानता और सम्मान के संबंध हैं। वे शिक्षकों की आवाज सुनने वाले अधिकारी हैं। शिक्षकों के भीतर ऐसी प्रेरणा भरते हैं कि शिक्षक सहर्ष  कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं और पूर्ण मनोयोग से उसे अंजाम देते हैं। छः महिने से भी कम समय में दो सौ से अधिक विद्यालयों में दीवार पत्रिका अभियान को पहुुंचा देना तथा इस दिशा  में काम का शुरू हो जाना, इस बात का प्रमाण है। उनकी लोकतांत्रिक कार्यशैली का ही कमाल है कि उनके क्षेत्र के अधिकांश विद्यालयों में पुस्तकालय पूरी सक्रियता के साथ संचालित हैं। वे न केवल पुस्तकालय संचालित करने के  लिए प्रेरित करते हैं बल्कि समय-समय पर अच्छी पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों से संस्थाध्यक्षों और शिक्षकों को परिचित कराते रहते हैं। अच्छा साहित्य उन तक पहुंचाने के लिए एक अभियान की तरह कार्य करते हैं। अपने समाज के प्रति उनके सरोकार और प्रतिबद्धताएं अद्भुत हैं। वे एक अधिकारी की तरह नहीं बल्कि एक समाज सेवक की तरह काम करते हैं। समाज के हित में चलाए जा रहे किसी भी सरकारी या गैर सरकारी अभियान में उनकी भागीदारी हमेशा  बढ़चढ़ कर रहती है। इसी के चलते वे शिक्षकों के साथ-साथ उच्च अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के भी चेहते हैं। यह हमारे लिए बड़ी प्रसन्नता की बात है कि दीवार पत्रिका अभियान से जुड़ा उनका एक अनुभव हमें प्राप्त हुआ है जिसके लिए हम उनके बहुत आभारी हैं। प्रस्तुत है उनका यह अनुभव-

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बाॅक्स फाइल से दीवार पत्रिका तक का सफर
                                   -आकाश  सारस्वत

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अगस्त 2010 में मैंने बागेश्वर जनपद के गरूड़ विकासखंड मंे कार्यभार ग्रहण किया। अपने विद्यालय भ्रमण के दौरान मैंने पाया कि अधिकांश  विद्यालयों का वातावरण नीरस और भयग्रस्त है। अध्यापक और विद्यार्थियों के बीच संवादहीनता की स्थिति दिखाई पड़ती थी। विद्यार्थी शिक्षकों से प्रश्न पूछने पर हिचकते थे। संवादहीनता खत्म करने के लिए मैंने विद्यालयों में बाल शिकायत व सुझाव पेटिका का प्रयोग प्रारम्भ करवाया ताकि बच्चे अपने मन की बात शिक्षक तक पहुंुचा सकें तथा समय-समय पर उन बातों पर चर्चा-परिचर्चा कर मैत्रीपूर्ण वातावरण का निर्माण किया जा सके। शुरूआती तीन महिनों तक इस दिशा में कोई खास सफलता नहीं मिली किंतु अध्यापकों के प्रयासों से विद्यार्थियों ने अपने मन की बात उस पेटिका में डालनी शुरू की। उनकी मन की झिझक भी कम होने लगी। अध्यापक और विद्यार्थियों के बीच निकटता बढ़ने लगी। धीरे-धीरे यह प्रयोग समस्त राजकीय प्राथमिक विद्यालयों के साथ-साथ हाईस्कूल और इंटर कालेजों में भी प्रारम्भ हो गया। छः माह होते-होते सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे। बड़े रोचक अनुभव मिलने लगे। यहां एक उदाहरण देना चाहूंगा। बात राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय चोरसों की है। एक बच्चे ने लिखा कि मुझे गणित से डर लगता है तो वहां कार्यरत शिक्षक हेम चंद्र लोहुमी ने पहाड़े सिखाने की ऐसी प्रविधि विकसित की कि सभी बच्चे खेल-खेल में पहाड़े याद करने लगे और धीरे-धीरे बच्चों के मन से गणित का भूत दूर होने लगा। ऐसे ही कुछ प्रयास रा0उ०प्रा0वि0 पिगंलो में भी किए गए।
  माह अप्रेल 2011 में उक्त दोनों विद्यालयों के शिक्षक हेम चंद्र लोहुमी और सुरेश चंद्र सती सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण माड्यूल निर्माण कार्यशाला में देहरादून गए। वहां पर उन्होंने इस प्रयोग से संबंधित अनुभवों को शेयर किया, जिन पर व्यापक चर्चा-परिचर्चा हुई। अंततः इस प्रयोग को सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण के माड्यूल में शामिल कर लिया गया। वर्ष  2011-12 से उत्तराखंड के सभी प्राथमिक विद्यालयों में बाॅक्स फाइल नाम से लागू किया गया। वर्श 2012-13 में उच्च प्राथमिक विद्यालयों में भी लागू कर दिया गया।
  बाॅक्स फाइल के माध्यम से विद्यार्थियों में सृजनात्मक क्षमता विकास को प्रोत्साहित किया गया । प्रत्येक विद्यार्थी की अलग-अलग फाइल बनायी गयी जिसमें विद्यार्थी की कविता,कहानी ,पेंटिंग एवं अन्य विचारों को संगृहित किया जाने लगा। इससे बच्चों की अभिरूचियों और आदतों के विशय में अध्यापकों को पता चलने लगा। अध्यापक और विद्यार्थियों की पारस्परिक दूरियां भी कम होने लगी। पठन -पाठन  का बेहतर वातावरण बनने लगा। बाॅक्स फाइल के लिए परियोजना की ओर से प्राथमिक में बीस रुपए और उच्च प्राथमिक में तीस रुपए प्रति विद्यार्थी धनराषि दी जाती थी।
   बाद में यह धनराषि बंद हो गई फलस्वरूप यह योजना भी सरकार की अन्य योजनाओं की तरह ही दम तोड़ने लगी। लेकिन हमने इस प्रयोग को  विकास खंड के हर विद्यालय में जारी रखा। उसी दौरान जिलाधिकारी और क्षेत्रीय विधायक के निर्देश पर मुझे बागेश्वर जनपद के अति दुर्गम विकास खंड कपकोट की चरमराती शिक्षा व्यवस्था को संभालने के लिए वहां का अतिरिक्त कार्यभार दे दिया गया। पहली की अपेक्षा अब मेरा कार्यभार दुगने से भी अधिक हो गया। वहां भी बाॅक्स फाइल पर फोकस करते हुए सभी विद्यालयों में शुरू करवाया।
लेकिन बाद में इसकी समीक्षा करने पर पाया कि प्रत्येक विद्यार्थी की प्रतिभा के विशय में मात्र अध्यापक कंो ही जानकारी थी। उसके अन्य साथी और अध्यापक उससे अनजान ही रहते थे। बाद में सभी के संज्ञान में लाने के उद्देश्य से एक चार्ट पेपर पर इसे चिपकाना शुरू किया तथा दीवार पत्रिका का उदय हुआ। यह कार्य अक्टूबर 2014 से शुरू हुुआ।
  इसी बीच कपकोट विकासखंड के रा.उ.प्रा.वि. सिमगढ़ी में कार्यरत कर्मठ अध्यापक हेम चंद्र पाठक ने बताया कि पिथौरागढ़ जनपद के नवाचारी शिक्षक महेश पुनेठा काफी समय से दीवार पत्रिका पर कार्य कर रहे हैं तथा वहंा के अन्य कई शिक्षकगण भी स्वैच्छिक रूप से कार्य कर रहे हैं। तब एक व्यापक कार्य योजना बनाकर गरूड़ और कपकोट के  समस्त विद्यालयों में युद्धस्तर पर दीवार पत्रिका पर काम  शुरू हुआ। अक्टूबर 14 में हेम चंद्र लोहुमी और हेम चंद्र पाठक ने दीवार पत्रिका का प्रथम अंक निकाला। उसके बाद दोनों विकास खंडों के लगभग चार सौ विद्यालयों में दीवार पत्रिका निकालने की दिषा में प्रयास प्रारम्भ हो गए। अभी तक लगभग दो सौ पच्चीस से अधिक  विद्यालयों से दीवार पत्रिका विधिवत निकलने लगी हैं। सिमगढ़ी,गोलना ,दुकुरा आदि विद्यालयों ने तो  अंग्रेजी भाषा  में भी दीवार पत्रिका के अंक निकाले हैं। आगे संस्कृत और कुमाऊंनी में भी अंक निकालने की योजना है।
   विद्यालयों में बाल मैत्रीपूर्ण वातावरण का निर्माण तथा आनंद के साथ सीखने में दीवार पत्रिका की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है तथा खेल-खेल में शिक्षा  की भावना को भी बल मिल रहा है। बहुभाषायी ज्ञान समृद्ध हो रहा है। बच्चों की सृजनात्मक क्षमता विकास व प्रतिभा प्रदर्शन में यह एक महत्वपूर्ण उपकरण बनती जा रही है। विद्यालयों में पठन-पाठन का बड़ा ही मनमोहक वातावरण भी निर्मित होने लगा है। न केवल विद्यार्थियों में अपितु अध्यापकों में भी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का भाव उत्पन्न हो रहा है। दीवार पत्रिका अभियान से अभिभावकों व समुदाय को भी जोड़ा जा रहा है जिससे वि़द्यालय व समुदाय की  दूरी भी कम हो रही है तथा संवाद का बेहतर वातावरण बन रहा है। साथ ही दीवार पत्रिका को पाठ्यक्रम से कैसे जोड़ा जाय? इस दिशा में अनेक कर्मठ अध्यापक काम कर रहे हैं। आशा है कि इस अभियान से शिक्षा  को एक नवीन दिशा व दशा मिलेगी। नवाचारी प्रवृत्ति के कारण विद्यालयों का नीरस वातावरण भी सरस बनेगा। साथ ही विद्यार्थियों के सामान्य ज्ञान में भी अधिक वृद्धि होगी। उनमें गणितीय व वैज्ञानिक अभिरूचि भी पैदा होगी।
 
  

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